वीडियो जानकारी: 30.10.24, बोध प्रत्यूषा, ग्रेटर नॉएडा
धर्म का विकृत व प्रचलित रूप है "लोकधर्म" || आचार्य प्रशांत, गीता दीपोत्सव (2024)
📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
1:23 - लोक धर्म की परिभाषा
5:17 - वास्तविक धर्म बनाम लोक धर्म
19:58 - ईश्वर की कल्पना और लोक धर्म
22:52 - लोक धर्म बनाम वास्तविक धर्म का खतरा
29:24 - कामना पूर्ति और लोक धर्म
35:26 - अशिक्षा, गरीबी और लोक धर्म
विवरण:
आचार्य जी ने "लोकधर्म" की गहराई से व्याख्या की। उन्होंने बताया कि लोकधर्म वह है जो tradition और आदतों को धर्म मान लेता है। यह अहंकार को justification देता है कि "हम बच गए, इसलिए यह superior है।" लोकधर्म अंधविश्वास, customs और कामनाओं पर आधारित होता है, जो सत्य और knowledge से दूर रखता है। यह "प्रेय मार्ग" को चुनता है, जहां व्यक्ति अपनी desires को धर्म के नाम पर जायज ठहराता है।
वास्तविक धर्म के विपरीत, लोकधर्म facts से बचता है और कल्पनाओं में जीता है। इसका उद्देश्य लोगों को कमजोर, uneducated और ignorant बनाए रखना है। लोकधर्म को शिक्षा, logic और सत्य से खतरा है, क्योंकि यह अंधविश्वास और भ्रामक परंपराओं को चुनौती देता है। उन्होंने कहा कि लोकधर्म अशिक्षा, गरीबी, inequality, और संघर्ष को बढ़ावा देता है और इसका उपयोग समाज में शक्तिशाली लोगों के self-interest साधने के लिए किया जाता है।
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