वीडियो जानकारी: अद्वैत बोध शिविर, 15.05.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
दृष्ट्वा मां त उपब्रज्य कृत्वा पादाभिवन्दनम्।
ब्रह्माणमग्रत: कृत्वा पप्रच्छ: को भवानिति॥ २०॥
इत्यहयं मुनिभि: पृष्टस्तत्त्वजिज्ञासुभिस्तदा।
यदवोचमह॑ तेभ्यस्तदुद्धव निबोध मे॥ २१॥
वस्तुनो. यदानानात्वमात्मन: प्रश्न ईदृशः।
कथं घटेत वो विप्रा वक्तुर्वा में क आश्रय:॥ २२॥
मुझे देखकर सनकादि ब्रह्माजी को आगे करके मेरे पास आये और उन्होंने मेरे चरणों की वन्दना करके मुझसे पूछा कि आप कौन हैं? प्रिय उद्धव ! सनकादि परमार्थतत्त्व के जिज्ञासु थे; इसलिए उनके पूछने पर उस समय मैंने जो कुछ कहा, वह तुम मुझसे सुनो- “ब्राह्मणो ! यदि परमार्थरूप वस्तु नानात्व से सर्वथा रहित है, तब आत्मा के संबंध में आप लोगों का ऐसा प्रश्न कैसे युक्तिसंगत हो सकता है? अथवा मैं यदि उत्तर देने के लिए बोलूँ भी तो किस जाति, गुण, क्रिया और संबंध आदि का आश्रय लेकर उत्तर दूँ?
~(हंसगीता, श्लोक 20, 21, 22)
~ श्री कृष्ण कौन हैं?
~ श्री कृष्ण क्या साधारण मनुष्य थे?
~ कृष्ण कौन जाति के थे?
~ आत्मा में क्या खंड होते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
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