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वीडियो जानकारी: 31.12.23, संत सरिता, ग्रेटर नोएडा
प्रसंग:
~ धार्मिक आदमी कौन है?
~ ज़िंदगी में घटाना आसान है या जोड़ना?
~ हटो और घटो, इससे क्या आशय है?
~ जो सबकुछ मैं जान रहा हूँ उससे पा क्या रहा हूँ?
~ नकली धार्मिक आदमी को कैसे पहचानें?
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रैन दिवस पिय संग रहत हैं ,
मैं पापिन नहिं जाना ॥
मात पिता घर जन्म बीतिया,
आया गवन नगिचाना।
आजै मिलो पिया अपने से,
करिहो कौन बहाना ॥ १ ॥
मानुष जनम तो बिरथा खोये,
राम नाम नहिं जाना।
हे सखि मेरो तन मन काँपै,
सोई शब्द सुनि काना ॥ २ ॥
रोम-रोम जाके परकाशा,
ताको निर्मल ज्ञाना।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
करो स्थिर मन ध्याना ॥ ३ ॥
~ कबीर साहब
शब्दार्थ: रैन दिवस- रात दिन; गवन- संसार से जाने की दशा; नगिचाना: निकट आना; विरथा- व्यर्थ
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श्लोक:
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप ॥
अन्वय:
एवं (इस प्रकार) परम्पराप्राप्तं (परम्परा से प्राप्त) इम् (यह योग) राजा ऋषयः (राजा और ऋषि) विदुः (जानते थे) परन्तप (हे अर्जुन) इह (इस लोक में) स: (वह) योग: (योग) महता (दीर्घ) कालेन (काल से) नष्टः (नष्ट हो गया है)
काव्यात्मक अर्थ:
परम से ना विलग हों
परंपरा बस यही है
शेष विषय अतीत के
नहीं ज़रूरी नहीं हैं
~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 2
संगीत: मिलिंद दाते
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