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वीडियो जानकारी: 26.03.24, गीता समागम , ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ।।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 16
खेल प्रकृति का है सब
जो हुआ खुद ही हुआ
मूढ़ अहम दुख पा रहा
सोचकर कि उसने किया
~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ
अर्थ:
कर्म क्या है, अकर्म क्या है, इस विषय में तो बड़े-बड़े ज्ञानी भी संशयग्रस्त रहते हैं, मोहित रहते हैं। तो अब मैं तुमसे कर्म के विषय में और अकर्म आदि के विषय में कहूँगा, जिसको सुनकर तुम्हें मोक्ष मिलेगा।
~ कर्म और अकर्म का सिद्धांत क्या है?
~ किसको गुलाम बनाना आसान है?
~ कर्म का सूचक क्या होता है?
~ दो तरह के सकामी कौन से होते हैं?
~ दुख से मुक्ति कैसे संभव है?
संगीत: मिलिंद दाते
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