अजमेर. ब्लैकमेल कांड का एक आरोपी जमीर हुसैन मुकदमे की ट्रायल के दौरान कभी गिरफ्तार नहीं हुआ। उसने यहां से फरार होकर अमरीका (न्यू जर्सी) की नागरिकता ले ली। पहली बार 2012 में भारत आने पर उसने अग्रिम जमानत हासिल कर ली। उसने यह जाहिर किया कि वह वारदात के दौरान कभी भारत आया ही नहीं। इस बीच जांच एजेंसी को उसके पासपोर्ट की जांच में भारत आने-जाने का इंद्राज वर्ष 1986 से होना मिला। जांच में उसके पोल्ट्रीफार्म की पीडिताओं ने घटना स्थल के रूप में पहचान की। यहां अन्य आरोपी भी आते-जाते रहे। पहली बार अदालत में पेश हुए जमीर को उम्रकैद की सजा भुगतने जेल जाना पड़ा।
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वारदात स्थलों की पहचान व जब्त आर्टिकल बने सजा का आधार
प्रकरण में जब्त आपत्तिजनक आर्टिकल, पीडि़ताओं द्वारा फार्म हाउस पर वारदात की तस्दीक उसकी सजा के प्रमुख आधार बने। अभियोजन पक्ष बलात्कार व षडयंत्र के आरोपों को सिद्ध करने में सफल रहा।
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देर है अंधेर नहीं. . .
अभियोजन पक्ष का कहना है कि पीडि़ताओं की उम्र 50 से अधिक हो गई है। जब भी उनके पास गवाही के समन जाते थे तो वह असहज हो जाती थीं। अदालत आने से भी उन्हें कई दिक्कतें होती थीं। लेकिन उनकी गवाही के बाद प्रकरण अंजाम तक पहुंचा। इस बात का संतोष पीडि़ताओं को है।