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वीडियो जानकारी:
विश्रांति शिविर, 7.3.20, अहमदाबाद, गुजरात, भारत
प्रसंग:
तत्त्व क्षेत्रं व्योमातीतमहं क्षेत्रज्ञ उच्यते ।
अहं कर्ता च भोक्ता च जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥
भावार्थ: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इन पंचतत्वों से बना यह शरीर ही क्षेत्र है तथा आकाश से परे अहंकार ही क्षेत्रज्ञ है। यह मैं ही समस्त कर्मों का कर्ता और कर्मफलों का भोक्ता है । इस ज्ञान को धारण करने वाला ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है।
~जीवन्मुक्त गीता (श्लोक ६)
~ जीवनमुक्त कौन है?
~ जीवनमुक्त कब होते हैं?
~ जीवनमुक्त होकर कैसे जिएं?
~ मुक्ति कौन चाहता है?
~ दुनिया में दुःख ज्यादा और सुख कम क्यों है?
~ क्या इसी शरीर के साथ मुक्त होकर जिया जा सकता है?
~ ऐसा कौन सा कर्म है जो परमानंद में लीन कर दे?
~ कोई भी घटना घटती है तो उसका भोक्ता कौन है?
संगीत: मिलिंद दाते
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