प्रयागराज: धर्म और आस्था की नगरी संगम नगरी प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर है। इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान हैं। इस मंदिर की महिमा का बखान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक की वह नागवासुकी का दर्शन न कर लें। इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि जब औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तो वह अति चर्चित नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था। वहीं मंदिर के पुजारी कहते हैं की जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया तो अचानक दूध की धार निकली और चेहरे के ऊपर पड़ने से वो बेहोश हो गया। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कई पुराणों में इस मंदिर का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सा के तौर पर किया था, वहीं समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे और भगवान विष्णु की सलाह पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था। इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है। जो भी श्रद्धालु सावन मास में नागवासुकी का दर्शन पूजन करता है उसकी सारी बाधायें दूर हो जाती हैं, साथ ही कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। वहीं नाग पंचमी के दिन दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए पहुंचते हैं।