लम्बा जीवन क्यों जिएँ? || आचार्य प्रशांत, ईशावास्य उपनिषद् पर, आइ.आइ.टी कानपुर सत्र (2020)

2024-08-05 5

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वीडियो जानकारी: 15.07.2020, आई.आई.टी-कानपूर, ग्रेटर नॉएडा, उत्तरप्रदेश, भारत

प्रसंग:

इह कर्माणि कुर्वन् एव शतं समाः जिजीविषेत्।
एवं त्वयि नरे इतः न अन्यथा अस्ति येन कर्म न लिप्यते ॥

भावार्थ- इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिये। हे मानव! तेरे लिए इस प्रकार का विधान है, इससे भिन्न किसी और प्रकार का नहीं है। इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य कर्म में लिप्त नहीं होता।

~ ईशावास्य उपनिषद् ( श्लोक 2)

~ उपनिषद् हमें लम्बा जीने को क्यों कह रहें है?
~ कई महापुरुष कम उम्र तक ही क्यों जीवित रहते हैं?
~ हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है?
~ उपनिषद् जीवन को स्वस्थ कैसे बनातें हैं?
~ मनुष्य कर्म से लिप्त कब नहीं होता?

संगीत: मिलिंद दाते
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