मरने के बाद आत्मा का क्या होता है? || आचार्य प्रशांत, कठ उपनिषद् पर (2024)

2024-08-02 2

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वीडियो जानकारी: 07.06.24, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ हमें कोई पसंद या नापसंद क्यों आता है?
~ क्या प्रेम हम करते हैं?
~ हमारा प्रेम क्यों झूठ हैं?
~ अहम झूठ क्यों है?
~ हम मशीन क्यों हैं?
~ जीवन में बदलाव कैसे लाएँ?
~ मरने से डर क्यों लगता है?
~ विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण क्यों होता है?
~ मेरी आत्मा कहना ये सबसे बड़ा भ्रम क्यों है?
~ चेतन कौन है?
~ जड़ कौन है?

ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके
सर्वान्कामांश्छन्दतः प्रार्थयस्व।
इमा रामाः सरथाः सतूर्या
न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः।
आभिर्मत्प्रत्ताभिः परिचारयस्व
नचिकेतो मरणं माऽनुप्राक्शीः॥ २५॥

अन्वय: ये ये कामा: = जो-जो भोग; मर्त्यलोके = मृत्युलोक में; दुर्लभाः = दुर्लभ हैं; सर्वान् कामान् = उन सभी भोगों को; छन्दतः प्रार्थयस्व = इच्छानुसार माँग लो; सरथाः सतूर्याः इमाः रामाः = रथ और नाना प्रकार के बाजों के सहित इन स्वर्ग की अप्सराओं को (अपने साथ ले जाओ); मनुष्यैः हीदृशा: = मनुष्यों को ऐसी स्त्रियाँ; न हि लम्भनीया: = नि:संदेह अलभ्य हैं; मत्प्रत्ताभिः = मेरे द्वारा दी हुई; आभिः = इन स्त्रियों से; परिचारयस्व = तुम अपनी सेवा कराओ; नचिकेतः = हे नचिकेता; मरणम् = मरने के बाद आत्मा का क्या होता है; मा अनुप्राक्षीः = यह प्रश्न मत पूछो ॥ २५ ॥

भावार्थ: हे नचिकेता ! मर्त्यलोक में जितने भी भोग्य पदार्थ दुर्लभ हैं, उन सभी को तुम स्वेच्छा पूर्वक माँग लो। रथ और कर्ण प्रिय वाद्य विशेषों से युक्त इन स्वर्ग की अप्सराओं को प्राप्त कर लो। मनुष्यों द्वारा इस प्रकार की स्त्रियों को प्राप्त करना सम्भव नहीं है। हमारे द्वारा प्रदत्त इन रमणियों से आप अपनी सेवा कराएं। किन्तु हे नचिकेता! मृत्यु के पश्चात् आत्मा का क्या होता है? यह हमसे न पूछें ॥ २५॥

~ कठोपनिषद, श्लोक 1.1.25

संगीत: मिलिंद दाते
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