अनोखा पत्थर - अनुपम शिला - अनुपान शिला महाराष्ट्र परंपरा में त्र्यंबकेश्वर को नाथ संप्रदाय का उद्गम माना जाता है। ये वही स्थान है, गुरु गोरक्षनाथ ने नौ नाथ और तीन सिद्धों को उपदेश दिया है। वह जगह जहां यह उपदेश दिया गया एक अनूठा बासी है। इस अनुपम बासी को भाषा में अनुपन बासी भी कहा जाता है। मन की शांति की तलाश में रहे परशुराम को भी गुरु गोरक्षनाथ ने इस अनुपम पत्थर को सौंप दिया। जिस बर्तन में ज्योत जलेगा, उसे तपस्या करने को कहा गया। वर्तमान कदली-वन में ज्योति प्रज्वलन के बाद गोरक्षनाथ ज्योति के रूप में प्रकट हुए थे, उस समय बहुत धूम (कोहरा ) थी। चूंकि कुहरे को कन्नड़ भाषा में मंजू कहा जाता है, इसलिए गुरु गोरक्षनाथ को मंजूनाथ भी कहा जाता है। इसी परंपरा के तहत आज भी नाथसंप्रदय का दल लोकतांत्रिक तरीके से राजा नियुक्त कर राजा के हाथों से राजा को सौंप दिया जाता है। साठ हजार ऋषि मुनियों के अनुरोध पर गुरु गोरक्षनाथ ने उन्हें सलाह देने की सहमति दी। गोरक्षनाथ उन सभी ऋषियों के साथ कलगिरी गए। वहाँ उसने एक बासी पर सभी ऋषि-मुनियों का प्रचार किया। गुरु गोरक्षनाथ द्वारा कहा गया एक एक शब्द नौ लोगों ने स्वीकार किया। इनको नवनाथ कहा जाता है उस प्रवचन को सुनने के बाद 4 लोग खड़े हो गए और इसका अर्थ समझ गए। इसीलिए इन्हें सबूत कहा जाता है। इस बासी को अनुपम शिला कहा जाता है गुरु गोरक्षनाथ ने नवनाथ और 3 सिद्धों को उपदेश दिया है। अनुपम बिना अनुपमा के बासी है। जय हो अलख निरंजन जी की .. ॐ चैतन्य शम्भू हर महादेव रक्षा करे ! संकलित !