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वीडियो जानकारी: विश्रांति शिविर, 09.05.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
हृदा कदा वा यदि वा गुणात्मकम्।
सो5ह॑ स्वपादाज्चितरेणुभि:. स्पशन्
पुनाति लोकत्रितयं. यथा रविः:॥ ५९॥
जो पुरुष अपने चित्त से मुझ गुणातीत निर्गुण का अथवा कभी-कभी मेरे सगुण स्वरूप का भी सेवन करता है, वह मेरा ही रूप है। वह अपनी चरण-रजके स्पर्श से सूर्य के समान संपूर्ण त्रिलोकी को पवित्र कर देता है।
~ (रामगीता, श्लोक-59)
~ साकार की उपासना कैसे करें ?
~ मूर्त की उपासना अच्छी या अमूर्त की?
~ सगुण से निर्गुण तक कैसे जाएँ?
संगीत: मिलिंद दाते
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