मुनाफा कमानें की चली होड़ में अमृत बेचने की आड़ में आम को परोसा जा रहा पानी की आड़ में धीमा जहर...!

2024-05-26 66

जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी की लापरवाही पड़ रही भारी, आरओ प्लांट की जांच के लिए तो मौके पर गए ही नहीं, भगवान भरोसे चल रही व्यवस्था
-जिले में आरओ प्लांट की आड़ में निर्धारित प्रावधानों की उड़ाई जा रही धज्जियां, गुणवत्ता विहीन पानी को ठंडाकर बेचा जा रहा
नागौर. आरओ प्लांट के नाम पर शुद्ध एवं ठंडा पानी पिलाने की आड़ में मापदण्डों को अंगूठा दिखाया जा रहा है। इसके चलते लोगों तक पहुंचने वाला पानी लोगों के स्वास्थ्य को सीधा नुकसान पहुंचा रहा है। जानकारों की माने तो ज्यादातर तो नहरी पानी को ही ठंडा कर उसे लोगों तक सीधा परोस रहे हैं। हालांकि शुद्ध वाटर के नाम पर तो बोतलबंद पानी की गुणवत्ता को भी विशेषज्ञों ने सीधा नकार दिया है। इनसे भी सीधा सेहत को खतरा माना है। इसके बाद भी इसे पूरी तरह से विशुद्ध बताते हुए केवल मुनाफा कमाने की होड़ में स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। बताते हैं कि जांच का जिम्मा जिले के खाद्य सुरक्षा अधिकारी का रहता है, लेकिन विभागीय सूत्रों की माने तो यह भी जांच करने मौके पर कभी जाते नहीं। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन प्लांटों में से जांच के नमूनों के रिकार्ड के बारे में बातचीत करने का प्रयास किया तो वह इस पूरे मामले पर बात करने से बचते नजर आए।
शुद्ध पानी बेचने होड़ में लगी प्रतियोगिता के बीच आम का स्वास्थ्य खराब होने लगा है, लेकिन इसकी चिंता न तो पानी बेचने वालों को है, और न ही अधिकारियों को। बताते हैं कि अकेले नागौर में आरओ के 27 प्लांट लगे हुए हैं। इसमें से प्रतिदिन हजारों लीटर पानी की सप्लाई केंपर के माध्यम से की जा रही है। प्लांटों से आ रहा पानी पीने के लिए कितना बेहतर है, और प्लांट में निर्धारित प्रावधानों की पालना की जा रही है कि नहीं आदि सरीखे सवालों की जांच करने की फुरसत किसी को नहीं है। इसके चलते अमृत की आड़ में धीमा जहर परोसा जा रहा है।
प्रावधानों को दिखा अंगूठा हो रही खानापूर्ति
विशेषज्ञों के अनुसार आरओ का जहां पर रो यानि की कच्चा वाटर संग्रह होता है। वहां पर न केवल सिरामिक टाइल लगी होनी चाहिए, बल्कि आरओ में पानी जाने से पहले इसका आठ घंटे तक क्लोरोराइजेशन होना चाहिए। इतना ही नहीं, बल्कि जिन पाइपों का इसमें इस्तेमाल किया जाता है। इसकी केमिकल से क्लीनिंग होनी चाहिए। कैंपर भी सफाई भी वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए। इसके साथ ही पानी को पूरी तरह से वॉश किया जाना चाहिए, लेकिन इसकी जगह केवल खानापूर्ति कर पानी सीधा केंपर में डाला और बताते हैं कि इनमें से एक भी प्रावधान का पालन आरओ वाटर प्लांट में नहीं किया जा रहा है।
पानी से सारे आवश्यक तत्व निकल जाते हैं
आरओ प्लांट में मशीन तो लगी रहती है, लेकिन अन्य प्रावधानों की पालना नहीं करने के कारण पानी औसत दर्जे की गुणवत्ता का हो जाता है। इसके चलते इसमें आवश्यक खनिज तत्व भी बाहर निकल जाते हैं। हालांकि कुछ जगहों पर इसे रसायनों के उपयोग से इसे शोधित करने की प्रक्रिया की जाती है, लेकिन इसमें पानी गुणवत्ता बढऩे की बजाय और ज्यादा घट जाती है।

बोतलबंद व आरओ की जगह यह पानी पीना चाहिए
प्लास्टिक या धातु के कंटेनरों के विपरीत, मिट्टी के बर्तन रासायनिक मुक्त होते हैं और पानी में खतरनाक यौगिकों को नहीं छोड़ते हैं। मिट्टी के घड़े या मटके का पानी भी पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी विकल्प है। प्लास्टिक की बोतलों या धातु के कंटेनरों के विपरीत, मिट्टी के बर्तन बायोडिग्रेडेबल होते हैं, और पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करते है। चूंकि मिट्टी झरझरा है, पानी सोख सकता है और वाष्पित हो सकता है, पानी को ठंडा कर सकता है। गर्म गर्मी के महीनों के दौरान, यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने और हीट स्ट्रोक को रोकने में मदद कर सकता है। यह पानी के पीएच स्तर को संतुलित करने में सहायता कर सकता है। मिट्टी की क्षारीय संरचना पानी की अम्लता को कम करने में मदद कर सकती है, जो पेट के विकारों से पीडि़त व्यक्तियों के लिए अच्छा हो सकता है। क्षारीय पानी शरीर के समग्र पीएच संतुलन को बढ़ाने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करने में भी मदद करता है।

इनका कहना है...
नागौर जिले में सभी आरओ प्लांट की अभियान स्तर पर जांच कराई जाएगी। इसमें प्रावधानों का उल्लंघन मिला तो फिर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
राकेश कुमावत, जिला मुख्य सुरक्षा अधिकारी, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग नागौर

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