प्रतापगढ़.
जिले में छोटे और लघु सीमांत किसानों का रुझान अब पारम्परिक खेती के साथ सब्जी वर्गीय फसलों की तरफ बढ़ गया है। इसमें किसानों को जहां रोजाना आय होती है। वहीं पारम्परिक खेती की तुलना में आय भी अधिक हो रही है। इसके साथ ही खेतों में जायद फसलों की भी खेती की जा रही है। कांठल में गत कुछ वर्षों से रबी और खरीफ की फसलों के साथ जायद की फसलें भी उत्पादन होने लगी है। किसानों का रुझान अब गर्मी के मौसम में मंूग, सब्जियां, तिल आदि का उत्पादन करने में लगे हुए है। इन दिनों कई खेतों में सब्जियां लहलहा रही है। जिले के धरियावद और पीपलखूंट इलाकों में मूंग की खेती अधिक हो रही है। इन इलाकों में जायद मूंग की खेती के लिए वातावरण उपयुक्त है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धरियावद इलाके में मिट्टी गुणवत्ता की पाई जाती है। इसके साथ ही यहां पानी की सुविधा भी है।
उन्हालु तिल व मूंग की फसल
स्वरूपज. उपखण्ड क्षेत्र में किसानों ने जायद की खेती करना शुरू किया है। गर्मी में खाली पड़े खेतों में तिल और मूंग की फसल बोई है। इसके साथ ही सब्जियों की भी बुवाई की है। इन दिनों सब्जियों की आवक होने लगी है। सूबी, जमलावदा, स्वरूपगंज, सेमरथली, जीवनपुरा, बरखेड़ा आदि गांवों सहित कई किसान जिनके यहां पर सिंचाई के साधन हैं, उन्होंने मूंग और तिल की फसल की बुवाई की है। किसानों ने बताया कि तिल की फसल तिलहन फसल है। मूंग एक लोकप्रिय दालों में से एक है। दोनों ही गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली फसल है।
सब्जियों से हो रही आमदनी
जिले में जिन किसानों के खेतों पर पानी की सुविधा है। वहां सब्जियों की पैदावार की जाने लगी है। जिले के सभी इलाकों में सब्जियों की पैदावार की जा रही है। इसमें भिंडी, तुरई, लौकी, मिर्ची, कद्दू, टेंग्सी, खरबूजा, तरबूज, ग्वार आदि की खेती की जा रही है। कद्दू की खेती से भी किसान अच्छी कमाई कर रहे है। किसानों ने खेत में कद्दू की फसल बोई है।
मवेशी नहीं खाते तिल की फसल
जिले में कुछ वर्षों से गर्मी में तिल की फसल की खेती भी की जाने लगी है। इस फसल को मवेशी भी नहीं खाते है। वहीं इसमें कीटों का प्रकोप भी नहीं होता है। इस फसल में अधिकतम पांच से सात सिंचाई की आवश्यकता होती है। गत कुछ वर्षों से जिले में तिल की फसल का उत्पादन भी किसान ले रहा है।