वीडियो जानकारी: 16.11.2019, हार्दिक उल्लास शिविर, जिम कॉर्बेट, उत्तराखंड
प्रसंग:
कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियते अर्जुन ।
सगं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः ॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से
आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है-
वही सात्त्विक त्याग माना गया है ॥
भगवद्गीता, अध्याय १८, श्लोक ९
~ शास्त्र विहित कर्म क्या है?
~ सत्य के मार्ग पर कैसे चलें?
~ अपने कर्तव्य का कैसे पता चले?
~ सात्विक त्याग क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते
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