वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 20.07.2019, अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा , भारत
प्रसंग:
श्रीमद्भगवद्गीता गीता (अध्याय 2, श्लोक 56)
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाःसुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधःस्थितधीर्मुनिरुच्यते॥
भावार्थः
दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्बेग नहीं होता,
सुखों की प्राप्ति में सर्वथा नि:स्पृह है तथा जिसके राग,
भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिर बुद्भि कहा जाता है ।।
~ मन को प्रभावित होने से कैसे बचायें?
~ 'स्थितधी' क्या है?
~ मन की असलियत?
संगीत: मिलिंद दाते
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