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वीडियो जानकारी:
प्रसंग:
कबीर साहब भजन - अब से खबरदार रहो भाई अब से खबरदार रहो भाई
"अब से खबरदार रहो भाई ।
गुरु दीन्हा माल खज़ाना, राखो जुगत लगाई । पाव रती घटने नहिं पावै, दिन दिन होत सवाई ।।
क्षमा शील की माला पहनो, ज्ञान वस्त्र लगाई । दया की टोपी सिर पर दे के, और अधिक बन आई ।।
वस्तु पाई गाफ़िल मत रहना, हर दिन करो कमाई । घट के भीतर चोर लगत हैं, बैठे घात लगाई ।।
बाहर ज्ञान रहे सिपाही, भीतर भक्ति अधिकाई । सुरति ज्योति हर दम सुलगे, कस कर तेल चढ़ाई ।।"
~ कबीर साहब शब्दार्थ: जुगत- युक्ति; गाफ़िल- अचेतन; सुरति- ध्यान
- यह भजन किसके लिए है?
संगीत: मिलिंद दाते
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