वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 11.08.2019, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, भारत
प्रसंग:
कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संग त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥५.११||
भावार्थ : कर्मयोगी ममत्वबुद्धिरहित केवल इन्द्रिय, मन, बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ति को त्याग कर अन्तःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं॥
~ कर्मयोगी का लक्ष्य क्या होना चाहिए?
~ क्या मालिक से गद्दारी नहीं करना चाहिए?
~ आचार्य जी का विडियो देखने में बाधा हो तो?
संगीत: मिलिंद दाते
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