उद्धव ठाकरे बुधवार को इस्तीफा देकर महाराष्ट्र के पूर्व सीएम हो गए. इस्तीफे से जुड़ी उन्होंने करीब 15 मिनट की एक स्पीच दी. इस दौरान उन्होंने कहा कि वो आए भी अनपेक्षित रूप से थे और जा भी अनपेक्षित रूप से रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि वो हमेशा के लिए नहीं जा रहे और वो शिवसेना भवन में फिर जाकर बैठेंगे और अपने सभी लोगों को इकट्ठा करेंगे. जब वो अपने आने यानी सीएम बनने को लेकर अनअपेक्षित यानी अनएक्सपेटेक्ट जैसे शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो लिबर्टी लेकर उनको भी एक्सीडेंटल सीएम कह सकते हैं. एक्सीडेंटल कहने के पीछे का एक बड़ा कारण ये भी है कि राजीव गांधी की तरह उद्धव की भी कभी राजनीति में ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. शायद यही वजह है कि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ख़ुद को बाल ठाकरे की शिवसेना के उत्तराधिकारी के तौर पर देखते रहे. हालांकि, जैसा इंदिरा गांधी ने संजय गांधी के मामले में किया, ठीक वैसे ही बाल ठाकरे ने भतीजे राज की जगह 2002 में बेटे उद्धव के हाथों में पार्टी की कमान सौंप दी. अब जब उनके हाथों से सीएम की कुर्सी चली गई और पार्टी की कमान फिसलती दिख रही है तो एक सवाल ये है कि क्या ख़त्म हो गई या उद्धव ठाकरे की पिक्चर अभी बाकी है?