दंतेवाड़ा में हुआ नक्सली हमला, पाकिस्तान में आसिया बीबी के ईशनिंदा मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और पाकिस्तानी अवाम का विरोध, राम मंदिर की सुनवाई की तारीख बढ़ने और हाशिमपुरा नरसंहार पर आया दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला आदि इस बार की एनएल चर्चा का विषय रहे.
इस बार की चर्चा में दो खास मेहमानों ने टेलीफोन के जरिए हिस्सा लिया. इनमें हैदराबाद से पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम, जिन्होंने नक्सली इलाकों में काफी पत्रकारिता की है और साथ ही पाकिस्तान से बीबीसी के पूर्व पत्रकार हफीज चाचड़ शामिल हुए. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल, विशष संवाददाता अमित भारद्वाज भी शामिल रहे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले और दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे किसी भी हिंसाग्रस्त इलाके में काम करने वाले पत्रकारों की क्या चुनौतियां हैं, जो पत्रकार वहां जा रहे है उनको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? यह बड़ा प्रश्न है. इसके जवाब में मालिनी सुब्रमण्यम ने कहा, “यह बहुत ही बड़ा घटना है. और इस बात पर दोनों पक्षों को, सरकार और माओवादी, सफाई देने की जरूरत है. हालांकि माओवादियों ने एक पर्चा जारी कर कहा है कि- “पत्रकारों पर हमला करने का उनका कोई उद्देश्य नहीं था. उन्होंने पुलिस के ऊपर हमला किया था. जैसे ही उन्होंने पुलिस को देखा तो हमला कर दिया. इस हमले को लेकर प्रपोगेंडा चलाया जा रहा है कि माओवादियों ने पत्रकारों को निशाना बनाया. उन्हें बिलकुल भी पत्रकारों के बारे में नहीं था पता था.”
अतुल ने पुलिस और पत्रकारों के साथ होने की ओर ध्यान खींचते हुए सवाल किया कि क्या पत्रकारों को ऐसे युद्धरत इलाकों में किसी भी एक पार्टी (सुरक्षा बल या माओवादी) के साथ रिपोर्टिंग के लिए जाना चाहिए? क्योंकि वहां किसी एक पार्टी के साथ होने की सूरत में रिपोर्टर खुद ब खुद दूसरी पार्टी के निशाने पर आ जाते हैं. मालिनी ने डीडी के पत्रकारों द्वारा की गई एक चूक बताया. उनके मुताबिक पत्रकार को स्वतंत्र रूप से ऐऐसे इलाकों में जाना चाहिए. पुलिस चाहे कितनी भी संख्या में हो, पत्रकार के साथ होना खतर?