19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति के बाद अमेरिका और यूरोप के
तमाम देशों में उद्योग धंधों और कामकाजी मजदूर वर्ग का
तेजी से विस्तार हुआ. इससे लोगों को रोजगार तो मिला लेकिन
उनके अधिकार बहुत सीमित थे. काम करने के घंटों की कोई
सीमा नहीं थी. पैसे में कटौती आम बात थी. मशहूर लेखक
अलेक्जेंडर ट्रेक्टनबर्ग ने अपनी किताब मई दिवस का इतिहास
में लिखा है, "तब कारखानों में मज़दूर चौदह, सोलह, अट्ठारह घंटे
काम किया करते थे. यह आम बात थी." जल्द ही मज़दूर इस
शोषण के खिलाफ संगठित होने लगे. 1880 के आस-पास ही
अमेरिका के अलग-अलग शहरों में कामगार और मजदूर संगठनों
ने काम के वक्त को आठ घंटे तक सीमित करने के लिए छोटे-मोटे आंदोलन शुरू कर दिए थे.