इस हफ्ते की टिप्पणी थोड़ा अलग है. इस बार हम बात करेंगे उस अखबार की जो ‘करोड़ों में बिकता है’. इस वाक्य से दो अर्थ निकलते हैं पहला तो ये कि अगर आपके जेब में करोड़ों हैं तो ये अखबार बिक सकता है दूसरा अर्थ ये निकलता है कि अखबार की प्रतियां करोड़ों में बिकती हैं. दोनों ही बातें सही हैं.
हम बात कर रहे हैं #DainikJagran की. इस टिप्पणी में लंबे समय से जुटाए गए कुछ आंकड़े हम आपके सामने रखेंगे ताकि इस अखबार की बेइमानियों को आप अच्छी तरह से समझें और इसका इस्तेमाल रद्दी, पोछा जैसे कामों के लिए करें, खबर के लिए तो कतई मत करें. यही माकूल वक्त है जब दैनिक जागरण खुद को संघ और भाजपा का मुखपत्र घोषित कर दे.
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