मोदीनगर विधानसभा का सियासी हाल
कैसा है आगामी चुनाव को लेकर हाल ?
सियासी लिहाज से क्या है आवाम की सोच ?
क्या मोदीनगर सीट पर बीजेपी करेगी मिशन रिपीट ?
क्या सपा का सियासी संकट इस बार होगा खत्म ?
क्या बीएसपी और कांग्रेस के लिए है हमदर्दी ?
या फिर RLD के स्वागत के लिए जनता तैयार !
देखिए क्या कहते हैं मौजूदा समीकरण ?
गाजियाबाद जिले की मोदीनगर विधानसभा पर सियासी धमाचौकड़ी की दस्तक का एहसास साफ महसूस किया जा सकता है…पंचायत चुनावों ने आगामी विधानसभा चुनावों की गर्मी का एहसास करवा दिया है और आवाम को भी एहसास हो गया है कि इस बार यहां से किसे चुनना है और किसे हार का हार पहनाना है…जानेंगे सियासी माहौल की दस्तक किस तरफ इशारा कर रही है लेकिन पहले जानते हैं कि पिछला सियासी इतिहास क्या कहता है…
मोदीनगर विधानसभा की अगर बात की जाए तो बेहद अहम है
यहां RLD, BSP और बीजेपी तीनों ही पार्टियों ने जीत दर्ज की है
2002 में पहला चुनाव जीतने वाली बीजेपी ने 2017 में जीत दर्ज की
BSP ने 2007 का विधानसभा चुनाव जीतकर खाता खोला था
2012 में RLD ने मोदीनगर विधानसभा पर फतह हासिल की थी
2017 का मुकाबला मोदीनगर में त्रिकोणीय देखने को मिला था
2017 में RLD, BSP और BSP में मुकाबला देखने को मिला था
त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी ने जीत का परचम लहरया था
मोदीनगर सीट पर BSP, BJP, RLD ने तो खाता खोला है लेकिन सपा ने जीत का स्वाद अब तक यहां से नहीं चखा है…समाजवादी पार्टी यहां हमेशा दूसरे, तीसरे और चौथे पायदान पर ऊपर-नीचे होती रही…लेकिन इस बार गठजोड़ की राजनीति सपा और RLD को ताकत दे रही है…ऐसे में इस बार समीकरण थोड़े बदले दिख रहे हैं…
2012 में जीत दर्ज करने वाली RLD ने यहां मजबूती हासिल की है
लेकिन 2017 में जीतने वाली BJP भी किसी से कमजोर नहीं है
किसान आंदोलन के सहारे RLD नेताओं की सियासत पैनी हुई है
मोदीनगर की आवाम के बीच अब RLD के हक में हमदर्दी है
RLD और सपा अगर यहां साथ मिलकर लड़ते हैं तो दोनों कड़ी टक्कर देंगे
सपा और RLD का वोटबैंक मिलकर बड़ा करिश्मा कर सकता है
लेकिन BSP, BJP और कांग्रेस से दोनों दलों को सावधान रहना होगा
BJP भी 2017 वाली जीत फिर से हासिल करने का प्लान बना रही है
लेकिन किसानों के मोर्चे पर बीजेपी की स्थिति थोड़ी कमजोर दिखती है
मोदीनगर सीट पर 2017 में बीजेपी के टिकट से जीतने वाली डॉ मंजू सिवाच भी सक्रिय दिख रही है…बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में RLD नेता सबसे ज्यादा सक्रिय हैं और उन्हे सपा नेताओं के साथ की जरूरत है…बीएसपी और कांग्रेस का कोई खास असर यहां नहीं दिखता…ऐसे में अगर 2022 में सपा RLD साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो फिर जीत गठबंधन के प्रत्याशी को मिलने की संभावना है…लेकिन अकेले दम पर चुनाव जीतने के लिए सपा को बहुत मेहनत करनी होगी और RLD को भी पसीना बहाना होगा…ब्यूरो रिपोर्ट