कहीं नल पर ताला, तो कहीं पैसों से पानी खरीद कर पी रहे लोग
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मथुरा प्रकृति ने मनुष्य को हर चीज निस्वार्थ भाव से समर्पित की है। आज मनुष्य ही प्रकृति के पतन का कारण बना हुआ है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति की हर वो चीज नष्ट कर रहा है जो वह प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई थी। मनुष्य पेड़ काट रहा है और इसका सीधा असर पढ़ रहा है पानी पर। जहां कभी पानी का अथाह सागर वह करता था आज लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। जिले के कई गांव ऐसे हैं जहां कोसों दूर से मीठा पानी लेकर महिलाएं आती हैं तो कहीं टैंकरों के द्वारा पानी की सप्लाई दी जा रही है। जहां मीठा पानी है वहां लोगों ने नलकूप पर अपना आधिपत्य जमा कर ताले जड़ दिए हैं और लोग पानी के लिए इधर-उधर भटकते नजर आते हैं।