योगीराज में पत्रकारों पर हमले का असली सच !
देखिए अब तक कितने पत्रकारों पर हुआ हमला !
योगी राज में पत्रकारों की हत्या का चौंकाने वाला आंकड़ा !
आखिर अब तक कहां सोई थी कानून व्यवस्था
आखिर अब तक क्यों नहीं जागा सरकार का पत्रकार प्रेम
आखिर अब तक कहां मर गई थी पत्रकार एकता
सवाल प्रदेश की पत्रकार यूनियन से भी बनता है
सवाल प्रदेश में पहले हुए पत्रकारों के हमले पर सरकार से भी बनता है
मुरादाबाद में पत्रकार और सपा नेताओं के बीच जो हुआ उसपर सरकार की दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रही है…साथ ही कुछ स्वयंघोषित पत्रकार यूनियने पत्रकार एकता का राग अलाप रही हैं…ऐसे में ये जानना भी बेहद जरूरी है कि पहले जब पत्रकारों पर हमले हुए, उनकी हत्याएं की गई तब ये कुकुरमुत्ता वाली पत्रकार यूनियनें कहां थी और तब सरकार का पत्रकार का प्रेम कहां था…जब खुद योगी सरकार ने पत्रकारों को फर्जी केस लगाकर जेल में डाला तो फिर पत्रकार एकता क्यों नहीं जागी…जो आज दहाड़ें मार मार कर रो रही है और एकता की बात करती है…आज हम आपको बताएंगे कि योगी राज में अब तक कितने पत्रकारों की हत्या की गई और कितने पत्रकारों पर हत्या के प्रयास के चलते हमले हुए और इनमे कितने नेता और पुलिसकर्मी शामिल थे…और शुरुआत जून 2019 से करते हैं
जून 2019 में शाहजहांपुर में पत्रकार राजेश तोमर पर हमला हुआ
राजेश तोमर और उनके भाई को चाकू घोपा गया था और सरिया से पीटा गया था
अवैध वसूली का पत्रकार राजेश तोमर और उनके भाई ने विरोध किया था
जुलाई 2020 में गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी
विक्रम जोशी पर हमला तब हुआ जब उन्होंने भतीजी से छेड़खानी का विरोध किया था
विक्रम जोशी की हमले के 2 दिन बाद अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी
19 जून 2020 को उन्नाव में पत्रकार की बीच रोड पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी
पत्रकार शुभममणि त्रिपाठी को उन्नाव-शुक्लागंज रोड पर दिन दहाड़े गोली मारी गई थी
अक्टूबर 2019 में कुशीनगर में पत्रकार राधेश्याम शर्मा की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी
अगस्त 2019 में सहारनपुर में पत्रकार और उनके भाई की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी
दलितों पर रिपोर्ट करने के जुर्म में वाराणसी के रामनगर में महिला पत्रकार पर केस दर्ज हुआ था
वाराणसी के रामनगर में पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर केस दर्ज किया गया था
2 सितंबर 2019 में मिर्जापुर में पत्रकार पवन जायसवाल पर केस दर्ज किया गया
पवन का कसूर ये था कि उन्होंने स्कूल में नमक से रोटी खाते बच्चों की खबर दिखाई थी
पवन जायसवाल मामले पर स्थानीय पुलिस की जमकर किरकिरी हुई थी
NCRB के आंकड़ों की माने तो योगी सरकार में पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं
‘आई द इंडियन फ्रीडम’ की रिपोर्ट ने भी चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए
2017 में पत्रकारों पर करीब 46 हमले किए गए
जिनमें सबसे ज्यादा 13 हमले पुलिस ने अलग-अलग जगहों पर किए
2017 में 10 हमले राजनीतिक दलों के नेताओं ने पत्रकारों पर किए
2017 में 6 हमले अज्ञात लोगों ने पत्रकारों पर किए
इन हमलो की लिस्ट देखने के बाद सवाल उठता है कि मुरादाबाद में हंगामे के बाद पत्रकारों की एकता जाग गई…लेकिन तब वो एकता कहां थी जब पत्रकारों को मौत के घाट तक उतारा जा रहा था…तब पत्रकार यूनियनों ने सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ एक्शन लेने का दवाब क्यों नहीं बनाया…जब बीजेपी ने ही फर्जी केस लिखे तब पत्रकार यूनियनों ने सरकार पर सुरक्षा के लिए कानून क्यों नहीं बनाए…तब बीजेपी नेताओं के खिलाफ केस न लिखवाने वाले आज घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं जो कि