बुंदेलखंड में बुंदेली खेल की परंपरा आज भी लोग बड़े हर्षाल्लास के साथ मनाते हैं। टेसू-झिंझिया विवाह का खेल बुंदेली संस्कृति को आज भी बनाए हुए है। यह अदभुत खेल पूरे एक महीने तक कुंवारी कन्याओं द्वारा खेला जाता है। कन्यायें इस खेल को चार चरणों में खेलती हैं। जो भादौ मास की पूर्णिमा के बाद शुरू हो जाता है और शरद पूर्णिमा तक चलता है। शरद पूर्णिमा की रात टेसू-झिंझिया का विवाह होने से इस पूर्णिमा को टिसवारी पूनो के नाम से भी जाना जाता है। बुंदेलखंड की धरा पर अनेक बुंदेली परंपरा आज भी अपनी छाप को छोड़े हुए हैं। जिन्हें भूल पाना आसान नहीं है। इसी क्रम में वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद ऋतु प्रारम्भ होने की दस्तक के मध्य यह खेल कुंवारी कन्याओं द्वारा ही खेला जाता है। जिसमें कन्याओं का झुंड भोर सवेरे जाग कर पूरे 15 दिन अर्थात् क्वांर मास के प्रथम पखवारे तक दीवार पर सूर्य-चंद्रमा का गाय के गोबर से चित्र बनाती हैं।