वृन्दावन। जहां एक रात में दर्जनों ट्रॉलियां इधर से उधर हो जाती हैं। एक रात में हज़ारों रुपये की मिट्टी पहुंच जाती है जहां- तहां। मिट्टी भरी ट्रॉलियां रात 9 बजे से शुरू होकर तड़के 4 बजे तक बेखौफ दौड़ती देखी जा सकती हैं। नगर का शायद ही ऐसा कोई छोर बाकी हो, जहां मिट्टी ट्रॉली न पहुंच पाती हो। ट्रैक्टर ट्रॉलियों पर चलने वाले चालक बालिग भी हैं या नहीं, इससे भी कोई सरोकार नहीं है। सवाल ये उठता है। कि आखिर रात के अंधेरे में ही क्यूं चलता है। मिट्टी ढोने का काम। ताजुब्ब की बात ये है। कि थाने- चौकी और तमाम पुलिस पॉइंटों की नाक के नीचे से गुजरती हैं। मिट्टी से लदी ये ट्रॉलियां। आखिर किसके तहफ़्फ़ुज़ में फर्राटे मार रही हैं। मिट्टी की ट्रॉलियां! कार्यवाही की बात करें तो कभी कभार एक- दो ट्रैक्टर ट्रॉलियों के खिलाफ चालान कर सिर्फ खानापूर्ति कर ली जाती है। अभी कुछ वर्ष पहले का ही मामला है। जब खनन माफियाओं की जेसीबी ने मिट्टी की आड़ में रात के समय नेपाली समाज की प्राचीन भजनस्थली को गिरा दिया था। जिसकी कीमत पुलिस के कई अधिकारियों और पुलिसकर्मियों को निलंबित होकर चुकानी पड़ी थी।