केंद्र सरकार को एक राष्ट्र.एक बाजार संबंधी अध्यादेश पर खुली बहस की चुनौती: रामपाल जाट
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने केंद्र सरकर को एक राष्ट्र एक बाजार संबंधी अध्यादेश पर खुली बहस की चुनौती दी है। उनका कहना है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम से ही किसानों को उनकी उपजों के उचित दाम एवं लूट से मुक्ति दिलाने के लिए कृषि उपज मंडी संबंधी कानून बनाए गए। प्रथम बार 1934 में पंजाब विधानसभा ने इससे संबंधित कानून पारित किया।
किसानों को ६० साल पीछे धकेल रही सरकार
स्वतंत्रता के बाद सन 1961 से कृषि उपज मंडी संबंधी कानून बनना आरंभ हो गया था। यह कानून किसानों के सुरक्षा कवच के रूप में बनाए गए थे। इनकी क्रियान्विति में तोल.मोल.बोल संबंधी उत्पन्न दोषों को संशोधित करने के लिए देश के किसानों ने निरंतर सरकारों से आग्रह किया। कोई व्यक्ति हाथ में फोड़े का उपचार कराने जाए और डॉक्टर उसके हाथ को ही काट दे जबकि फोड़े का उपचार संभव है। यही काम केंद्र सरकार किसानों के साथ कर रही है।
जाट ने कहा कि कृषि उपज मंडी संबंधी कानून का प्रभाव में आना किसानों के संघर्षों का फल था। जिनके आधार पर छोटे.छोटे व्यापारियों की देश में श्रंखला बनी। अब इस श्रंखला को समाप्त कर बड़े पूंजीपतियों को कृषि उपजों के व्यापार में एकाधिकार सौंपना,किसानों को उनकी उपजों के वर्तमान में प्राप्त हो रहे दामों से भी वंचित करना है। इसके द्वारा किसानों को 60 वर्ष पीछे धकेला जा रहा है।
अपना मंतव्य प्रकट करे सरकार
उनका कहना था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के द्वारा भंडारण की सीमा समाप्त करना बड़े पूंजीपतियों के लिए व्यापार में एकाधिकार का ही मार्ग प्रशस्त करेगा। इससे उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों की जेबों पर डाका डालना सरल बन जाएगा। इसलिए कृषि राज्य मंत्री ने इस संशोधन से किसानों के लाभ की चर्चा ही नहीं कि वरन व्यापारियों के लाभ को प्रमुख बताया हैं। केंद्र सरकार को देश के किसानों बहस के लिए खुली चुनौती है। यानि उनकी बात सही होगी तो देश के किसान उसे स्वीकार करेंगे इसी प्रकार का मंतव्य केंद्र सरकार को भी प्रकट करना चाहिए।
जहां तक कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन एवं सुविधा अध्यादेश, 2020 एवं मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान सशक्तिकरण और सुरक्षा समझौता अध्यादेश, 2020 अध्यादेशों का प्रश्न है, वे भी किसान विरोधी हैं पूंजीपतियों को पोषित करने वाले हैं, इन अध्यादेशों के माध्यम से किसानों को उनकी उपजों के उचित दाम दिलाने संबंधी वक्तव्य सर्वथा निराधार एवं मिथ्या तथ्यों पर आधारित होने से भ्रामक है। देशभर के किसानो ंका आक्रोश कल सड़कों पर व्यक्त हुआ उससे भी सरकार को सीख लेनी चाहिए।