फफूंद/ औरैया लॉक डाउन की वजह से गैर प्रांतों व शहरों से लौट रहे प्रवासियों के लिए प्रदेश की योगी सरकार के द्वारा तमाम सुविधाओं का दावा किया जा रहा है लेकिन स्थिति इससे बत्तर है भाग्यनगर की ग्राम पंचायत टीकमपुर में असलियत कुछ और ही बयां कर रही है गांव में आए प्रवासियों को काम धंधा न मिलने की वजह से उनके सामने परिवार का भरण पोषण कर पाना कठिन हो रहा है लॉक डाउन की यह कहानी विकासखंड भाग्यनगर की ग्राम पंचायत टीकमपुर गांव की है समाजसेवी प्रशांत त्रिपाठी ने बताया है कि टीकमपुर गांव के दर्जनों गरीब मजदूर परिवार अपने बच्चों का पेट पालने के खातिर हरियाणा, दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, लुधियाना,जैसे शहरों से इस आस के साथ अपने गांव वापस लौट आए कि शायद वहां कुछ दिन मनरेगा में काम मिलेगा जिससे कुछ दिनों तक दो वक्त की रोटी मिल सकेगी वही काम के खातिर वह ग्राम प्रधान रामबाबू राजपूत, व ग्राम पंचायत विकास अधिकारी प्रेमचंद से मिले और अपनी पीड़ा को बयां किया लेकिन उन्हें क्या पता था कि बदकिस्मती यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ेगी ग्राम पंचायत प्रधान ने तो साफ-साफ कह दिया आप लोगों के लिए यहां काम नहीं है यहां पर केवल हमारे गांव के लोगो को ही काम दिया जाएगा बाहर शहरों से अपने गांव टीकमपुर वापस आए लगभग 20 प्रवासी मजदूरों के परिवार कोरोना जैसी महामारी से तो किसी तरह बच गए लेकिन इन मजदूरों को काम न मिलने के कारण सबसे बड़ी समस्या है, इनके बच्चों की पेट की आग कैसे बुझेगी।