कोरोना वायरस इतना डरावना निकला कि बड़े बड़ों के अंहकार पिघल गए। पांवों के नीचे से धरती खिसकती दिखाई पड़ने लगी। लोग कपड़ो में सिमट गए। अर्थात् उनमें जो मानवीय संवेदना मरने के कगार पर पहुंच गई उसमें प्राण लौट आए। घर के लोगों में अपना प्रतिबिंब दिखाई देने लग गया।। पेश है पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की कलम से...नए वरदान।
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