अंबिकापुर. मां ने जिस बेटे को जन्म दिया और पाल-पोसकर बड़ा किया था। उसे बड़ी उम्मीद थी कि एक दिन उसकी अर्थी को बेटा कंधा देगा, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। बेबस वृद्ध मां को ही इकलौते बेटे की चिता को आग देनी पड़ी। दरअसल जशपुर जिले के कांसाबेल निवासी उसके बेटे ने 8 मई को जहर सेवन कर लिया था। उसका इलाज मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चल रहा था। यहां 11 मई को उसने दम तोड़ दिया। मां का कहना था कि मैं अपने बेटे को जिंदा लेकर आई थी अब उसकी लाश लेकर जाने की ताकत नहीं है। अगर मैं बेटे की लाश लेकर जाती भी हूं तो वहां मेरा कोई नहीं है और लॉक डाउन के कारण रिश्तेदार भी नहीं पहुंच सकेंगे। फिर उसने अपने बेटे का अंतिम-संस्कार अपने हाथों अंबिकापुर में ही करने का निर्णय ली। इस पर मेडिकल कॉलेज अस्पताल की पुलिस सहायता केंद्र के आरक्षक व शहर के पत्रकारों ने उसकी मदद की। इन सभी के सहयोग से अंबिकापुर के मुक्तिधाम में वृद्धा ने अपने बेटे का अंतिम संस्कार किया। वृद्धा के पति की सात माह पूर्व हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। जब की चार साल पूर्व कैंसर से बेटी की भी मौत हो गई थी। पति व बेटी को खोने के बाद इकलौते बेट पर काफी उम्मीद थी, वह भी टूट गई।