कोरोना के दर्द पर पुलिस अफसर की यह सच्ची कविता आपको भी पिघला देगी.. जरुर सुनें.. सुकून मिलेगा
2020-05-02 207
किसे के बांधे बंधन में ये मौत भला कब रुक पाई है... मैं बेदम बूढ़ा लाचार बहुत हूं, अब चलने की रुत आई है... पर प्रभु सुनो इतनी सी अरज हमारी, बस थोड़ी मोहलत दे देना... ना अपनों का साथ मिलेगा, यही सोचकर आंखे भर आई हैं.... जारी है....