सच्ची लगन एवं सकारात्मक सोच के साथ यदि कोई काम किया जाए तो उसके उसकी सफलता निश्चित है। नागौर के जेएलएन राजकीय अस्पताल के कोरोना प्रभारी डॉक्टर राजेन्द्र बेड़ा, डॉक्टर सुरेन्द्र भाकल एवं उनकी टीम की सफलता का फलसफा भी यही है। पिछले करीब एक महीने की मेहनत के बाद जब शुक्रवार को जेएलएन अस्पताल से 18 मरीजों को छुट्टी दी गई तो यही लगा कि कोरोना महामारी का जितना हौवा है, उससे जीतना ज्यादा मुश्किल नहीं है, जरूरत है तो बस धैर्यए अनुशासन एवं गाइडलाइन की पालना करने की।
हां, यह जरूर है कि कोरोना की अब तक कोई वैक्सीन नहीं बनी, लेकिन फिर भी इसे हराया जा सकता है। जेएलएन अस्पताल के चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टाफ की मेहनत ने 18 दिन बाद गुरुवार को चार मरीजों को डिस्चार्ज किया गया जबकि शुक्रवार को एक दर्जन से अधिक मरीज और इसके बाद यह सिलसिला जारी रहेगा। जेएलएन से डिस्चार्ज होने वाले मरीजों एवं डॉक्टर से हमने बात की तो कई ऐसे पहलू सामने आएए जो यह बताते हैं कि मरीज को ठीक करने के लिए केवल दवा ही कारगर नहीं होती, बल्कि डॉक्टर को मरीज से भावनात्मक रूप से भी जुडऩा पड़ता है।
चूंकि बीमारी पहली बार आई, इसलिए मरीज के साथ डॉक्टर के लिए भी सब कुछ नया था। ऐसी विपरीत परिस्थिति में काम करते हुए जेएलएन के चिकित्सकों ने काम करते हुए उल्लेखनीय परिणाम दिया है। हालांकि 100 से अधिक मरीज होने के कारण काफी मुश्किल काम था, लेकिन फिर भी चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय करने के जुनून ने डॉक्टर्स को प्रेरित किया और सकारात्मक परिणाम भी निकल आया।
दो चुनौतियां थीं सामने
जेएलएन अस्पताल में भर्ती किए गए कोरोना पॉजिटिव मरीजों को लेकर डॉक्टरों के लिए दो तरह की चुनौती थीं, एक तो जो लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं उन्हें ठीक करना है और दूसरी यह भी थी कि इस महामारी को कैसे रोकें। इसके लिए चिकित्सकों के लिए यह जरूरी था कि जो लोग संक्रमित मिले थे, उनके लक्षणों का विस्तृत विश्लेषण करके इस बीमारी को समझना और साथ में मरीज को जो ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, वह किस दिशा में जा रहा है, उसका भी अध्ययन करना। इसके साथ मरीजों को यह भी समझाना कि इस बीमारी से ठीक हो सकते हैं, ताकि वे पॉजिटिव रहें।
डाक्टर्स का कहना है कि अस्पताल में भर्ती हुए पॉजिटिव मरीजों की हिस्ट्री ली, जिसमें यह जानने का प्रयास किया कि उनके शुरुआत में बीमारी के क्या लक्षण थे, क्या वे ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आए, जो पहले से संक्रमित था, सम्पर्क में आने के कितने दिन बाद तकलीफ हुई, तकलीफ हुई तो शुरुआत में क्या.क्या हुई, आदि प्रश्नों के उत्तर जानकार क्रमबद्ध अध्ययन किया। मरीजों की दिनचर्या का सूक्ष्म परीक्षण किया। यह देखा कि जिस मरीज में सुधार आया और जिस मरीज में सुधार नहीं हुआए उनकी दिनचर्या में क्या अंतर रहा। छोटी.छोटी बातों को पकड़कर हम आगे बढ़े।
मरीजों को तीन श्रेणियों में बांटा
श्रेणी ए . न्यूनतम लक्षण
श्रेणी बी . बुखार, खांसी, श्वांस में तकलीक, गले में दर्द एवं सिर दर्द जैसे लक्षणों वाले मरीजों को रखा गया।
श्रेणी सी . हाई रिस्क ग्रुप 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, श्वास रोग, अस्थमा, गुर्दे के मरीज, टीबी, कैंसर आदि गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को शामिल किया गया। इसके साथ गर्भवती महिला व 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी इसमें रखा।