कैराना की अल कुरआन अकेडमी के डायरेक्टर मुफ्ती अतहर शम्सी ने बताया कि इस्लाम के पैगंबर हज़रत मुहम्मद सअव ने अपनी ज़िंदगी में तरावीह की नमाज़ केवल तीन दिन जमात से मस्जिद में पढ़ी थी। इन तीन दिनों को छोड़ कर आपने यह नमाज़ कभी भी मस्जिद में जमात से नहीं पढ़ी। इससे मालूम हुआ कि रमजान के महीने में पढ़ी जाने वाली तरावीह की नमाज़ घर पर भी बिना लोगों को इकट्ठा किए पढ़ी जा सकती है। उन्होंने कहा कि लोगों को चाहिए कि वो अपने पैगंबर की मिसाल को याद रखें और न तो तरावीह के लिए मस्जिद में इकठ्ठा हों और न इसके लिए वो लोगों को घरों में बुलाएं। उन्होंने कहा कि इस बार की जमात यह है कि लोग अपने घरों में रह कर कुरआन को अपनी भाषा में समझ कर पढ़ें। उन्होंने बताया कि तरावीह की नमाज़ में कुरआन का ख़तम करना अनिवार्य नहीं है, जिसके लिए आम तौर पर घर से बाहर निकलना पड़ता है। लोगों को चाहिए कि वे कुरआन ख़तम करने के लिए अपने घरों से बाहर न निकलें। मुफ्ती अतहर शम्सी ने कहा कि रोज़े का मकसद लोगों को भूखा प्यासा रखना नहीं है, बल्कि रोज़े का मकसद भूक और प्यास में भी अपने गुस्से को शांत रखना और भूखों की भूख का ऐहसास कराना है। इसलिए लोगों को चाहिए कि वे इस मौके पर भूखों को खिलाएं लेकिन इफ्तार पार्टी बिल्कुल न करें।