वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, १३ नवम्बर २०१८, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
साधुन की झुपड़ी भली, न साकट के गांव।
चंदन की कुटकी भली, ना बबूल बनराव।।
शब्दार्थ: कबीर कहते हैं कि साधुओं की कुटिया भली है लेकिन दुष्टों का गाँव भला नहीं है। चंदन का टुकड़ा अच्छा है लेकिन बबूल का जंगल ठीक नहीं है।
~ गुरु कबीर
~ दुष्ट किसे मानें?
~ साकट का क्या अर्थ होता है?
~ इन्द्रियों के फेर से कैसे बाहर आएँ?
संगीत: मिलिंद दाते