लाइफस्टाइल डेस्क. सीखने की कोई उम्र नहीं होती इसका एक बड़ा उदाहरण है महाराष्ट्र के ठाणे जिला की आजीबाई ची शाला। इस शाला में दादी और नानी गुलाबी साड़ियों में प्राथमिक शिक्षा लेती नज़र आती हैं। इसकी शुरुआत की फंगाने जिला परिषद प्राथमिक शाला के 45 वर्षीय शिक्षक योगेंद्र बांगरे ने की थी। यहां 60 से 95 साल की महिलाएं पढ़ाई से जुड़े उन सपनों को पूरा कर रही हैं जो अधूरे रह गए थे।
गुलाबी साड़ियों में पहुंचती हैं दादी-नानी
महाराष्ट्र के ठाणे जिले के फंगाने गांव में चल रही इस शाला के लिए योगेंद्र की मदद की मोतीराम चैरिटेबल ट्रस्ट ने। ट्रस्ट की मदद से शाला में ब्लैकबोर्ड, चॉक, डस्टर और बैठने की व्यवस्था का इंतजाम किया गया है। शाला में पढ़ने जाने वाली दादी-नानियों को गुलाबी साड़ी, बस्ता, स्लेट और चॉक देने का काम भी ट्रस्ट कर रहा है। योगेन्द्र का शुरुआती लक्ष्य किसान महिलाओं को शिक्षित करना था। धीरे-धीरे इस पहल से और महिलाएं जुड़ती गईं और एक बड़ा समूह बन गया।