#Harshmountainsikar #हर्षपर्वतसीकर #जीणमाता
#सीकर #Harsh_parvat_sikar
हर्षगिरि ग्राम के पास हर्षगिरि नामक पहाड़ी है, जो 3,000 फुट ऊँची है और इस पर लगभग 900 वर्ष से अधिक प्राचीन मंदिरों के खण्डहर हैं। इन मंदिरों में एक काले पत्थर पर उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुआ है, जो शिवस्तुति से प्रारम्भ होता है और जो पौराणिक कथा के रूप में लिखा गया है। लेख में हर्षगिरि और मन्दिर का वर्णन है और इसमें कहा गया है कि मन्दिर के निर्माण का कार्य आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, सोमवार 1030 विक्रम सम्वत् (956 ई.) को प्रार[[म्भ होकर विग्रहराज चौहान के समय में 1030 विक्रम सम्वत (973 ई.) को पूरा हुआ था। यह लेख संस्कृत में है और इसे रामचन्द्र नामक कवि ने लेखबद्ध किया था। मंदिर के भग्नावशेषों में अनेक सुंदर कलापूर्ण मूर्तियाँ तथा स्तंभ आदि प्राप्त हुए हैं, जिनमें से अधिकांश सीकर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
#Harsh_Mountain #Sikar
पूनियां के कुल देवता है #भैरूजी_महाराज
#पुनियां_गोत्र_इतिहास
पुनियाँ गौत्र को अलग अलग जगह पर कई नामो से जाना जाता है।
जैसे पुनियाँ, पोनिया, पोनि, पून्या और पौनिया।
इतिहासकार दलीप सिहँ अहलावत और बनवारी सिंह नम्बरदार के अनुसार पूनियाँ ये मध्य एशिया पर राज करने वालो मे से एक है।
पूनियाँ लोग राजा विरभद्र के बेटे पौनभद्र के वँशज है।
हिसार गजेटियर के अनुसार पूनिया लोग अपने को शिव या शिवी गोत्री मानते हैँ। ये नागवँशी क्षत्रिय हैँ।गुजरात मे ये पौन और पौलिया लिखते हैँ।इतिहासकार लिखते हैँ कि राजस्थान आने से पहले ये मध्य एशिया मे थे।और फिर उत्तर भारत के पँजाब मे आए। 326 बी सी मे अलेकजेण्डर(सिकन्दर) पँजाब आया तब ये सिकन्दर से लङे ।
तब पूनियाँ सिहाग गोदारा सारण बेनिवाल और जोहिया के साथ उत्तरी राजस्थान मे आ गये।ये जाँगल प्रदेश या राजस्थान मे ईसा के आरम्भिक काल मे पहुँचे और इस भूमि पर 15 वी शताब्दी तक राज किया।जिन दिनो राठौङो का दल बीका और कान्दल के सँचालन मे राजस्थान या जाँगल प्रदेश मे पहुँचा।उस समय पूनियाँ सरदारो के आधीन 300 गाँव थे।इनके 6 राज्य और भी राजस्थान मे थे।रामरत्न चारण ने राजपूताने के इतिहास मे इन राज्यो को भौमियाचारे राज्य लिखा है।इन राज्यो का वर्णन भारत के देशी राज्य, तारीख राजगान हिन्द, वाकये राजपूताना आदि कई इतिहासो मे है। उस समय पूनियो की राजधानी झाँसल थी।#prg_technical