ब्रह्म ही सत्य है वही अविकारी परमेश्वर है।ब्रह्म को ईश्वर , अल्लाह , गॉड , ईसा , भगवान, परमात्मा, परमेश्वर आदि नामों से जाना जाता है।
योगी जिसे परमात्मा कहता है। ज्ञानी ब्रह्म कहता है और भक्त भगवान कहता है। ब्रह्म, अनन्त सत्य, अनन्त चित और अनन्त आनन्द है । वो स्वयं ही परमज्ञान है, वो निराकार, अनन्त, नित्य और शाश्वत है। ब्रह्म की लीला है सगुण और निर्गुण । इसको हम एक तरीके से और कह सकते है कि सब ‘भाव’ चित्त का है । जैसी जिसकी पात्रता वैसा उसका दर्जा ।
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डॉ रमेश सिंह पाल पेशे से वैज्ञानिक और जुनून से आध्यात्मिक प्रेरक और विचारक हैं। एक आध्यात्मिक प्रेरक और विचारक के रूप में, पिछले वर्षों में, वे वेदांत, भागवत गीता और श्रीमद् भागवत महापुराण का अध्ययन कर रहे हैं। अपनी आध्यात्मिक यात्रा से उन्होंने जो ज्ञान प्राप्त किया, वह "अपना स्वरूप" नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ है। लेखक का मानना है कि एक महान जीवन जीने के लिए, सभी चार पहलुओं यानी पेशेवर, आध्यात्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में संतुलन होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आध्यात्मिक प्राप्ति की प्रक्रिया में; सब कुछ भीतर है, बाहर कुछ भी नहीं।
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