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शब्दयोग सत्संग
१९ जून २०१३
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
1. रचनहार को चीन्हि ले, खाने को क्या रोय।
मन मंदिर में पैठी के, तान पिछोरी सोय।।
2. चिंता छोड़िए अचिंत रह, देनदार समरथ।
पसू पखेरू जंतु जीव, तिन के गांठी न हथ।।
3. चिंता छोड़िए अचिंत रह, देनदार समरथ।
पसू पखेरू जंतु जीव, तिन के गांठी न हथ।।
4. किये बिना, मांगे बिना, जाने बिना सब आए।
काहे को मन कल्पिये, सहजे रहा समाए।।
5. मुरदे को भी देत है कपड़ा पानी आग
जीवत नर चिंता करै, ताका बड़ा अभाग।
6. सीतलता तब जानिए, समता रहै समाए ।
विष छाड़ै निरविष रहै, सब दिन दूखा जाए ॥
~ गुरु कबीर
प्रसंग:
जीवन में श्रद्धा कैसे लायें?
श्रद्धा किसके प्रति करें?
श्रद्धा और विश्वास में क्या अंतर है ?
श्रद्धा और अंधविश्वास में क्या अंतर हैं?
श्रद्धा इतनी महत्वपूर्ण क्यों?
हममें में "मीरा, कबीर, बुल्ले शाह जैसा असीम श्रद्धा कैसे अये?
श्रद्धा और विश्वास में क्या अंतर है?
संगीत: मिलिंद दाते