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शब्दयोग सत्संग
11 अगस्त, 2019
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
१. यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्यौगैरपि गम्यते ।
एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ॥५ .५||
भावार्थ : ज्ञान योगियों द्वारा जो गति प्राप्त की जाती है, कर्मयोगियों द्वारा भी वही प्राप्त की जाती है। इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोग को (फल से ) एक देखता है, वही ठीक देखता है॥
२. लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः ।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥५.२५||
भावार्थ : जिनके सब संशय ज्ञान द्वारा निवृत्त हो गए हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं और जिनका जीता हुआ मन निश्चलभाव से परमात्मा में स्थित है, वे ब्रह्मवेत्ता पुरुष शांत ब्रह्म को प्राप्त होते हैं॥
क्या केवल ज्ञान योग से परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है?
कर्मसन्यास का क्या अर्थ है?
पाप क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते