वीडियो जानकारी:
१६ अप्रैल, २०१८
हार्दिक उल्लास शिविर,
पंगोट, उत्तराखंड
प्रसंग:
नित्यमात्मस्वरूपं हि दृश्यं तद्विपरीतगम् ।
एवं यो निश्चयः सम्यग्विवेको वस्तुनः स वै ॥ ५॥
भावार्थ: आत्मा का स्वरुप नित्य है और दृश्य उसके विपरीत या अनित्य है। ऐसा जो दृढ़ निश्चय है, वही आत्मवस्तु का विवेक है।
~ अपरोक्षानुभूति
संसार का मूल भ्रम क्या है?
क्या जीव का होना ही भ्रम है?
भ्रम से कैसे पार पाएँ?
साधक कि लिए भ्रम से निकलना क्यों ज़रूरी है?
अपरोक्षानुभूति को कैसे समझें?
संगीत: मिलिंद दाते