वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१३ मार्च २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
(अध्याय १८ श्लोक ७४)
अक्षयं गतसन्ताप-मात्मानं पश्यतो मुनेः।
क्व विद्या च क्व वा विश्वं क्व देहोऽहं ममेति वा ॥
The wise one who percieves the Self ,
as both imperishable and free from grief,
where is knowledge and where is the universe?
Where is the feeling “I am the body,”or the “Body is mine”?
प्रसंग:
अक्षय का क्या आशय है?
श्लोको को कैसे पढ़े ?
निर्विकल्पता माने क्या?