वीडियो जानकारी:
१७ अगस्त २०१९
शब्दयोग सत्संग
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।
न ह्यसन्न्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! जिसको संन्यास कहते हैं, उसी को तू योग जान क्योंकि संकल्पों
का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता॥
(भगवद गीता अध्याय ६, श्लोक २)
अहंकार क्या मांगता है?
निष्काम कर्म क्या है?
सकाम कर्म क्या है?
संकल्पशून्यता क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते