वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२ जुलाई २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
कांच कथीर अधीर नर, जतन करत है भंग |
साधु कंचन ताइए, चढ़े सवाया रंग ||
प्रसंग:
अपनी बेसब्री की वजह जानते हो?
"साधु कंचन ताइए, चढ़े सवाया रंग" से क्या आशय है?
क्या हमारी व्याकुलता परम की पुकार है?