वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२१ फरवरी २०१६
रमण महर्षि केंद्र, दिल्ली
प्रसंग:
क्या यह सम्भव है कि हम सामज में भी रहें और हमारा मन समाज के अनेक प्रभावों से अछूता रहे?
क्या समाज से हटने का विकल्प इंसान के पास रहता है?
क्या समाज से हटने के लिए जो चित्त चाहिए, जो श्रद्धा चाहिए, वो होती है हमारे पास?
क्या सामाजिक रह करके भी मन अपना रह सकता है?
आध्यात्मिकता के साथ समाज में कैसे रहें?
आध्यात्मिकता क्या होती है?
सांसारिक काम करते हुए अध्यात्म के साथ कैसे रहें?
क्या संसार में रहकर आध्यात्मिक हो सकते हैं?
समाज से इतना डर क्यों लगती है?