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शब्दयोग सत्संग
13 जुलाई 2019
अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न क्यों होता है?
धर्म का नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप क्यों फैल जाता है?
मोह को कैसे छोड़ें?
श्लोक:
[श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १, श्लोक ४०)]
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः ।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥
भावार्थ :
कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं तथा धर्म का नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है ॥
श्लोक:
[श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १, श्लोक ४१)]
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥
भावार्थ :
हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है ॥
संगीत: मिलिंद दाते