वीडियो जानकारी:
१८ मई, २०१९
हार्दिक उल्लास शिविर,
शिमला,
हिमांचल प्रदेश
प्रसंग:
बलिया आशिक होइओ रब्ब दा,
मलामत हुई लाख,
तैनूं लोकीं काफिर आखदें,
तूं आहो-आहो आख।
~ संत बुल्लेशाह जी
क्या हमारा मन वास्तव में हमारा होता है?
मन को कैसे समझें?
मन को जानना क्यों ज़रूरी है?
मन भटकता क्यों रहता है?
बाबा बुल्लेशाह को कैसे समझें?
संगीत: मिलिंद दाते