संसद में इस समय #ElectoralBond फिर से चर्चा में है और खूब हंगामा हो रहा है. मगर हम बधाई देना चाहते है मीडिया को और विपक्ष को डेढ़ साल बाद जागने के लिए! साल 2017 में कानून बनने के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड का प्रावधान आया. द क्विंट ने मान्यता प्राप्त संस्थान से जांच कराया था जिसमें पता चला कि ये ट्रेसेबल है यानी इसमें डोनर का पता चल सकता है. और ये जानकारी सिर्फ सरकार को मिल सकती है, पब्लिक को नहीं. #BreakingViews