कार्तिक पूर्णिमा 12 नवंबर, मंगलवार को है। ये दिन नदियों में दीपदान का है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली भी कहा जाता है। दीपावली कार्तिक अमावस्या पर होती है। ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली मानी जाती है। इसके कुछ खास कारण हैं।
कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन पहले देवप्रबोधिनी एकादशी होती है। इस दिन माना जाता है कि भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को वे सृष्टि के संचालन का भार भगवान शिव से लेते हैं। पुराणों में भगवान विष्णु को सृष्टि का संचालक माना गया है। देवशयनी एकादशी से जब सूर्य दक्षिणायन होता है और मांगलिक कार्य निषेध होते हैं, तब माना जाता है कि भगवान विष्णु योग निद्रा में हैं। उस समय सृष्टि का संचालन भार भगवान शिव के हाथों में होता है। देवप्रबोधिनी एकादशी को देवताओं के दिन की शुरुआत माना जाता है। इसी समय भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। एकादशी को जाग कर त्रयोदशी पर वे शिव से सृष्टि के संचालन का भार वापस लेते हैं। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा पर देवताओं का उत्सव शुरू होता है। इसी उपलक्ष्य में नदियों में दीपदान किया जाता है। ये दीपदान देवताओं के निमित्त होता है। इसी कारण कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली कहते हैं।