वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
३० जुलाई २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अध्याय २, श्लोक ४६(भागवतगीता )
श्लोक: यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके ।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ||
प्रसंग:
असली ब्राह्मण कैसे पहचाने?
ब्राह्मण कैसे हों?
क्या बहुत पाप करने के बाद भी ब्राह्मण हुआ जा सकता है?
क्या ब्राह्मण होने का अर्थ अविवाहित होना है?
विवाह, स्त्री और ब्राह्मण में क्या बातें सामान हैं?