पटना. नहाय-खाय के साथ गुरुवार को 4 दिन तक चलने वाले छठ महापर्व की शुरुआत हो गई। सुबह से ही गंगा घाटों पर व्रतियों की भीड़ लगी रही। यहां व्रतियों ने छठ का प्रसाद बनाने के लिए गेहूं धोया। गंगा स्नान के बाद व्रती महिलाओं ने एक-दूसरे की मांग में सिंदूर लगाया। आज व्रती पवित्र स्नान के बाद कद्दू की सब्जी, अरवा चावल का भात, चने की दाल, आंवले की चटनी, लौकी का बजका आदि प्रसाद ग्रहण करेंगी।
शुक्रवार 1 नवंबर को खरना, 2 नवंबर को सांध्यकालीन अर्घ्य और 3 नवंबर की अहले सुबह प्रात:कालीन अर्घ्य दिया जाएगा। अर्घ्य के बाद व्रती पारण करेंगे और इसके साथ ही लोक आस्था का यह महान पर्व संपन्न हो जाएगा।
छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग
इस बार छठ महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बन रहा है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चली आ रही है। शनिवार 2 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य पर त्रिपुष्कर योग का संयोग बन रहा है। जबकि 3 नवंबर रविवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ-साथ त्रिपुष्कर योग का शुभ संयोग बन रहा है।
आरोग्यता व संतान के लिए उत्तम है छठ व्रत
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है। प्रत्यक्ष देव भगवान भास्कर को सप्तमी तिथि अत्यंत प्रिय है। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं।
छठ महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चटनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुत्र की प्राप्ति होती है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाती है। वहीं इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है। छठ महापर्व शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है, जो श्रद्धापूर्वक व्रत-उपासना करते हैं। प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र से अर्घ्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है।